हमारे बारे में
प्रिय साथियों
सहकार रेडियो आवाज़ आधारित एक मीडिया प्लेटफार्म है और वैकल्पिक मीडिया के क्षेत्र में चल रहे तमाम प्रयासों के क्रम में ही एक और कोशिश है। हमारा मानना है कि जब एक तरफ आर्थिक-राजनीतिक ताकतों का गठजोड़ आम जनता को लूट रहा हो और इन लुटेरों के पक्ष में फ़ेक न्यूज़, पेड न्यूज़ एवं तमाम तरह के भ्रामक प्रचारों की आंधी चल रही हो, तो उसके जवाब में सच्चाई परोसने वाली और इन तमाम भटकावों के बीच आम जनता को रोशनी दिखाने वाली ताक़तों की मजबूत उपस्थिति अनिवार्य है। अतः कविता-कहानियों-संस्मरणों, गीत-संगीत, सूचनाओं-समाचारों, लेख-चर्चा-बहस तथा अन्य तमाम रचनात्मक तरीक़ों से प्रगतिशील विचारों को पनपने और फलने-फूलने की ज़मीन तैयार करनी होगी| समाज के तमाम अँधेरे कोनों तक सत्य का प्रकाश पहुँचाने के लिए हम सभी को इस महत्वपूर्ण काम में लगना ही होगा।
वैकल्पिक मीडिया के तमाम प्रयोगों-प्रयासों के दौर में हम चाहते हैं कि इस काम में लगे तमाम लोग व संस्थाएं अपने वैचारिक शुचिता के टापुओं से उतरकर कम से कम कॉमन मुद्दों व बहुत ही बुनियादी वैचारिक-सैद्धांतिक विषयों पर जनता की चेतना को विकसित करने के लिए साझा मंचों का निर्माण तो करें ही|
जहां तक बात ‘सहकार रेडियो’ की है, तो हमें लगता है ‘आवाज़’ के माध्यम की अपनी एक अलग ताक़त है। खासकर वर्तमान में, जब इन्टरनेट की दरें लगातार सस्ती हो रही हैं और स्मार्टफ़ोन यूज़र्स की संख्या लगातार बढ़ रही है| ऐसे में सुलभ माध्यमों का इस्तेमाल करके या खुद का कोई अप्लिकेशन आदि बनाकर आवाज़ के मीडिया का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा किया जा सकता है| जिन लोगों की पहुँच अभी भी इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन तक नहीं बन पायी है, उनके लिए ब्लूटूथ और अन्य रचनात्मक तरीकों से ऑडियो फाइल शेयरिंग का विकल्प भी है|
इस बात की गंभीरता को तमाम जनपक्षधर शक्तियों को समझना चाहिए कि जब देश की बहुसंख्यक आबादी निरक्षर हो और इंटरनेट पर तमाम प्रगतिशील सामग्री मुख्यतः लिखित रूप में ही उपलब्ध हो, तो सच्चाई के स्वरों का हाशिए की जनता तक पहुच पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। निश्चित रूप से वीडिओ फॉर्म में हम बातों को और भी बेहतर तरीक़े से रख सकते हैं लेकिन उसकी भी कुछ सीमाएं हैं जबकि आवाज़ का माध्यम उनमे से बहुत सी सीमाओं को तोड़कर व्यापक जन समुदाय तक अपनी पहुच बनाने की सामर्थ्य रखता है| ज़रुरत है तो बस रचनात्मक सामूहिक प्रयासों की| इस बात को थोड़ा और विस्तार से कहा जाए, तो निरक्षर, दृष्टिबाधित और साधन विहीन लोगों की सबसे आसान पहुंच तो ऑडियो ही है क्योंकि स्मार्टफोन न सही, साधारण या फ़ीचर फ़ोन उनके हाँथ में ज़रूर आ गया है| IVR सिस्टम या अन्य रचनात्मक तरीकों का इस्तेमाल करके हम उनतक अपनी पहुंच बना सकते हैं| “सीजीनेट स्वर” और “ग्राम वाणी” जैसे प्रयोग इस तकनीक का इस्तेमाल पहले से ही कर रहे हैं| हांलाकि शुरुवाती स्तर पर हमारी पहुंच अभी स्मार्टफ़ोन तक ही है, लेकिन व्यापक जनता की भागीदारी और सहयोग/सहकार के दम पर इससे आगे बढ़ने का प्रयास जल्द ही किया जाएगा|
दूसरी ओर, बात अगर साधन संपन्न लोगों की करें, तो जिस तेज़ी से पढ़ने-लिखने की आदत ख़त्म हो रही है और जीवन में असुरक्षा व भय जनित भागमभाग लगातार तेज़ होती जा रही है, ऐसे में तमाम संसाधनों से लैस लोग भी पत्र-पत्रिकाओं और टेलीविजन-इंटरनेट पर चल रही तमाम प्रगतिशील वैचारिक-राजनीतिक-सामाजिक बहसों तक मुश्किल से ही पहुँच पाते हैं। ‘आवाज़’ का मीडिया काफी हद तक इस अंतराल को भरने की भी सामर्थ्य रखता है क्योंकि तमाम व्यस्तताओं के बीच कोई भी व्यक्ति सुन तो सकता ही है|
यह संभव कैसे होगा? इसका जवाब इसके अलावा और क्या हो सकता है कि प्रगतिशीलता, वैज्ञानिकता, तार्किकता, इंसानियत और जनवाद के पक्षधर लोगों व संगठनों के सहयोग/सहकार के दम पर|
उम्मीद है, हम सभी मिलकर मीडिया का यह सहकारी ढांचा जल्द ही विकसित कर पाएंगे।