विचार यात्रा : दीपमाला की क़तारों से अँधेरा क्या छटेगा-आदित्य कमल
Created on November 14, 2020
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सहकार रेडियो के श्रोताओं को हमारा नमस्कार, साथियो आज है दीपावली। आप सभी अपनी अपनी तरह से इस उत्सव को मनाने में लगे होंगे। मंदी से जूझ रहे बाज़ार में भी इसी बहाने थोड़ी रौनक आ गयी। क्योंकि पैसे वालों के अलावा गरीब लोग भी ऐसे त्यौहारों में अपनी क्षमता से बाहर जाकर अपने बच्चों और परिवार वालों की खुशी के लिए मिठाइयां, पटाखे और अन्य सजावट के सामान खरीदते ही हैं और इसी बहाने थोड़ा खुश हो लेते हैं। लेकिन इस सबके बावजूद एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसकी झोली में ये खुशियां नहीं हैं। हमारी आपसे ये गुजारिश है कि जब आप अपनों के बीच खोये हुए इस उत्सव को मना रहे हों, तो ज़रा ये भी सोचियेगा कि इस तबके की बदहाली का कारण कौन लोग हैं? और इन्हे इनके हिस्से की खुशियां वापस दिलाने में आपकी क्या भूमिका होगी। तो आज की विचार यात्रा में ऐसे ही कुछ विचार हम लेकर आये हैं जनवादी कवि आदित्य कमल की इस कविता के माध्यम से, उन्हीं की आवाज में सुनिये ये कविता जिसकी पंक्तिया कुछ यूं हैं- ‘‘दीपमाला की कतारों से अधेंरा क्या छटेगा’।
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